गलत मार्ग का अंजाम
किसी ग्राम में किसान दम्पति रहा करते थे | किसान
तो बुढा था | पर उसकी पत्नी युवती थी | अपने पति से संतुष्ट न रहने के कारण किसान
की पत्नी सदा पर – पुरुष की टोह में रहती थी | इस कारण एक पल भी घर में नहीं रूकती
थी | एक दिन किसी ठग ने उसको घर से निकलते देख लिया |
उसने उसका पीछा किया और जब देखा की वह एकांत में पहुच गई तो
उसके सम्मुख जाकर उसने कहा, ‘देखो मेरी पत्नी का देहान्त हो चूका है | में तुम पर
अनुरक्त हूँ | मेरे साथ चलो |’ वह बोली, ‘यदि ऐसी ही बात है तो मेरे पति के पास
बहुत सा धन है, बुडापे के कारण वह हिलडुल नहीं सकता | में उसको लेकर आती हूँ, जिससे
की हमारा भविष्य सुखमय बीते |’ ठीक है जाओ | कल प्रात : काल इसी समय इसी स्थान पर
मिल जाना |’ इसी प्रकार उस दिन वह किसान की स्त्री अपने घर लोट गई | रात होने पर
जब उसका पति सो गया, तो उसने अपने पति का धन समेटा और उसे लेकर प्रात : काल उस
स्थान पर जा पहुंची | दोनों वहाँ से चल दिए | दोनों अपने ग्राम से बहुत दूर निकल
आये थे की तभी मार्ग में गहरी नदी आ गई | उस समय उस ठग के मन में विचार आया की इस
ओरत को में अपने साथ ले जाकर क्या करूँगा | और फिर कोई इसको खोजता हुआ कोई इसके
पीछे आ गया तो वैसे भी संकट ही है | अत: किसी प्रकार इससे सारा धन हाथियाकर अपना
पिण्ड छुड़ाना चाहिये | यह विचार कर उसने कहा, ‘नदी बड़ी गहरी है | पहले में गठरी को
उस पार रख आता हूँ, फिर तुमको अपनी पीठ पर लादकर उस पर ले चलूँगा | दोनों को एक
साथ ले चलना कठिन है |’ ठीक है, ऐसा ही करो |’ किसान की स्त्री ने अपनी गठरी उसे
पकड़ाई तो ठग बोला, ‘अपने पहने हुए गहने – कपडे भी दे दो, जिससे नदी में चलने की
किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होगी, और कपडे भीगेंगे भी नहीं |’ उसने वैसा ही किया |
उन्हें लेकर ठग नदी के उस पार गया तो फिर लोटकर आया ही नहीं | वह ओरत अपने
कुकर्त्यो के कारण कही की नहीं रही |
इसलिए कहते है की अपने हित के लिए गलत कर्मो का
मार्ग नहीं अपनाना चाहिये
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