लोभ कटाए गला
किसी नगर में हरिदत्त नाम का एक ब्राहमण निवास
करता था | उसकी खेती सादारण ही थी, इसलिए अधिकांश समय वह खाली ही रहता था | एक बार
ग्रीष्म ऋतू में अपने खेत पर वृक्ष की शीतल छाया में लेटा हुआ था सोये - सोये उसने
अपने समीप ही सर्प का बिल देखा, उस पर सर्प फन फेलाए बेठा था | उसको देखकर वह
ब्राहमण विचार करने लगा की हो न हो, यही मेरे छेत्र का देवता है | मेने इसकी कभी
पूजा नहीं की | अत: आज में इसकी अवश्य पूजा करूँगा | यह विचार मन में आते ही वह उठा और कही से जाकर
दूध मांग लाया |
उसे उसने एक मिटटी के बर्तन में रखा और बिल के समीप जाकर बोला, हे
छेत्रपल ! आज तक मुझे आपके विषय में मालूम नहीं था, इसलिए में किसी प्रकार की पूजा
अर्चना नहीं कर पाया | आप मेरे इस अपराध को क्षमा कर मुझ पर कृपा कीजिये और मुझे
धन – धान्य से परिपूर्ण कीजिये |’ इस प्रकार प्राथना करके उसने उस दूध को वही पर
रख दिया और फिर अपने घर को लोट गया | दुसरे दिन प्रात: काल जब वह अपने खेत पर आया तो सर्वप्रथम उसी स्थान
पर गया | वह उसने देखा की जिस बर्तन में उसने दूध रखा था, उसमे एक सोने की मुद्रा
रखी हुई है | उसने उस मुद्रा को उठाकर रख लिया | उस दिन भी उसने उसी प्रकार सर्प
की पूजा की और उसके लिए दूध रखकर चला गया | प्रात : काल उसको फिर एक सोने की
मुद्रा मिली | इस प्रकार वह नित्य पूजा करता, अगले दिन उसको एक सोने की मुद्रा मिल
जाया करती थी | कुछ दिनों बाद उसको किसी कार्य से अन्य ग्राम में जाना पड़ा | उसने
अपने पुत्र को उस स्थान पर दूध रखने का निर्देस दिया | उस दिन उसका पुत्र गया और
वहां दूध रख आया | दुसरे दिन जब वह पुन: दूध रखने के लिए गया तो देखा की वहां एक
सोने की मुद्रा रखी हुई है | उसने उस मुद्रा को उठा लिया और वह मन ही मन सोचने लगा
की निश्चित ही इस बिल के अन्दर सोने की मुद्राओ का भंडार है | मन में यह विचार आते
ही उसने निश्चय किया की बिल को खोदकर सारी मुद्राएँ ले ली जाये | सर्प का भय था |
किन्तु जब दूध पिने के लिए सर्प बाहर निकला तो उसने उसके सर पर लाठी का प्रहार
किया | इससे सर्प तो मरा नहीं और इस प्रकार से क्रुध होकर उस ब्राहमण पुत्र को काट
लिया | उसकी तत्काल मृत्यु हो गई |
मंत्र : लालच का फल
मीठा नहीं होता
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