Saturday 7 February 2015

बुद्धि और बल

बुद्धि और बल

एक बड़े तालाब का बुढा बगुला बुडापे के कारण मछलिया पकड़ने में असमर्थ हो गया था| तालाब के किनारे बैठकर, भूख से व्याकुल होकर आंसू बहाता रहता| एक केकड़े ने बगुले को उदास देखकर पूछा, ‘मामा तुम रो क्यों रहे हो?’ क्या तुमने आजकल खाना पीना छोड़ दिया है?अचानक यह क्या हो गया?’



 बगुला बोला, ‘बच्चे, मेरा जन्म इसी तालाब के पास हुआ था| यही मेने इतनी उम्र बिताई |अब सुना है की यहाँ बारह वर्सो तक पानी नहीं बरसेगा |’ केकड़े ने पूछा,’तुमसे ऐसा किसने कहा है?’ बगुले ने कहा,’मुझे यह बात एक ज्योतिषी ने बताई है| तालाब के सुख जाने पर  इसमें रहने वाले प्राणी भी मर जायेंगे| इसी कारण में परेसान हूँ|’ बगुले कि यह बात केकड़े ने अपने सभी साथियों को बताई| वे सब बगुले के पास गए और उससे बोले,’मामा, ऐसा कोई उपाय बताओ, जिससे हम सब बच सके|’ बगुले ने बताया, ‘यहाँ से कुछ दूर एक बड़ा सरोवर है| यदि तुम लोग वहां जाओ तो तुम्हारे प्राणों की रक्षा हो सकती है|’ सभी ने एक साथ पूछा, ‘हम उस सरोवर तक पहुचेंगे कैंसे?’ चालाक बगुले ने कहा, ‘में तो अब बुढा हो गया हूँ| फिर भी तुम लोग चाहो तो में तुम्हे पीठ पर बैठाकर उस तालाब तक लेजा सकता हूँ|’ सभी बगुले की पीठ पर चढ़कर दुसरे तालाब में जाने के लिए  तैयार हो गए| दुष्ट बगुला पर्तिदिन एक मछली को अपनी पीठ पर चढ़ाकर ले जाता और शाम को तालाब पर लोट आता| इस प्रकार उसकी भोजन की समस्या हल हो गई| एक दिन केकड़े ने कहा, ‘मामा, अब मेरी भी तो जान बचाईये|’ बगुले ने सोचा, मछलिया तो वह रोज खाता है| आज केकड़े का मांस खायेगा | ऐसा सोचकर उसने केकड़े को अपनी पीठ पर बैठा लिया| उड़ते हुए वह उस बड़े पत्थर पर उतरा, जहाँ वह हर दिन मछलियों को खाया करता था| केकड़े ने वह पड़ी हुई हड्डियों को देखा| उसने बगुले से पूछा, ‘मामा, सरोवर कितनी दूर है? आप तो थक गए होंगे|’ बगुले ने केकड़े को मुर्ख समझकर उत्तर दिया, ‘अरे, कैसा सरोवर! यह तो मेने अपने भोजन का उपाय सोचा था| अब तू  भी मरने के लिए तैयार हो जा|’ इतना सुनते ही केकड़े ने बगुले की गर्दन जकड़ ली और अपने तेज दांतों से उसे काट डाला| बगुला वही मर गया| इसलिए कहा गया है की जिसके पास बुद्धि  है, उसी के पास बल भी होता है 


No comments:

Post a Comment